Facebook पर एक पोस्ट पढ़ी :
कॉफी पर सिर्फ दुनियादारी रस्में निभाई जाती हैं,
रिश्ते तो आज भी चाय पर ही बनते हैं |
इसे पढ़कर एक बहुत ही पुरानी लिखी कविता याद आगई जिसमे मैंने phrase ‘चाय पर चर्चा’ का इस्तेमाल किया था | (इसके लिये अभी की राजनितिक पार्टी से मुझे Royalty का दावा करना चाहिये| 😛😊😁
चाय बनाम कॉफी
मैं हरदम यही सोचता था कि
चाय पर होती है असली चर्चा
कॉफी सिर्फ फ़िज़ूल है खर्चा
पर जब गया चेन्नई और कोची
बदल गई जो बात थी सोची
बिन कॉफी कोई बात न बढ़ती
लाले पड़ गये थे रोजी रोटी
डील बड़ी हो या हो छोटी
कॉफी पर ही फाइनल होती |
समझ आया
चाय या कॉफी का नहीं है महत्व
स्थान स्थान का है अपना गुरुत्व
-रविन्द्र कुमार करनानी
01-04-2000