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परिवर्तन

Over the years I have come across a lot of women in cyberspace, mostly on Facebook. These include the women folk in my family, my wife,daughters, grand-daughters too. Penned this poem to put forth my views about the positive changes I found in them over the years. I judged it solely based on the POSTS made by them, their ‘comments’ on various posts and some occasional brief exchange of messages. A few of these awesome ladies also have some awesome Blogs on Word Press and/or Posts on their FB pages! ☺️

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परिवर्तन

समय के साथ बदलती नारी 
अब नहीं रही है वो ‘बेचारी’
क्या बदला है उसमे विचारें
उसका बदला रूप निहारें

अब उसका है अपना व्यक्तित्व
हठधर्मी, स्वछन्द,मजबूत और घनिष्ट
अब है वो स्वयं की हिमायती
और खुद की उत्साही प्रशंसक
अब नहीं चाहिए उसे बाहरी समर्थन
सचमुच ये है कमाल का परिवर्तन

उसके अपने भय भी हैं, चिंता भी
कुछ पूर्वाग्रह हैं कुछ झिझक भी
कुछ तो जैसे बिस्तर के नीचे ही छिपे बैठे हैं
कुछ अतीत से अपनी परछाईं डाल ऐंठे हैं
पर वो है पूरी तरह निश्चिन्त और है निष्फिकर
क्योंकि उसका आत्मविश्वास कहता है मन में आकर
“नारी में युगों से चले आरहे ‘जीन्स’ है इनका कारण
तुम मत घिरो इन वृथा आशंकाओं में अकारण”

उसके पास है भरपूर सामर्थ्य और प्रचुर क्षमता
अब उसका मन केवल घरेलू कार्यों में नहीं रमता
गृहणी का कर्त्तव्य निभाती है पूरे तन से मन से
और आज कल साथ ही अपने परिश्रम के धन से
क्यों बेकार करे अपनी ऊर्जा जो है उसमे इतनी
चंद्रयान को पहुँचा सके मंगल ग्रह तक जितनी
प्रतिभा,कौशल,गुण योग्यता का इतना है बाहुल्य
उसे प्रभु का कृपा प्रसाद मान, अब मानेंगे बहुमूल्य

लावण्यपूर्ण मुखाकृति उसकी है अति लुभावना चेहरा
ह्रदय में झाँका नहीं किसीने जो सुंदरता में और भी गहरा
बहुदा उसने स्वयं भी अपने सौंदर्यबोध को है नकारा
ध्यान अटक जाता वाह्य पर, नहीं अंतर्मन को दिया सहारा
आत्म तत्व उसका देखा जब जग ने ,साधु साधु है उचारा

मधुर मनोहर मधुकर व्यक्तित्व है उसका
वो गर्मजोशी की तरंगें करती है प्रसारित
एक प्रवीण जोशीले विजेता के गुण हैं सारे
केवल अपनी ड्राइव खोजने के लिए चाहिए
उसे थोड़ा सा प्रयास अत्यधिक

एक समय था जब आत्म-प्रेम को मानती थी स्वार्थपरता
अपना पूरा प्रेम औरों पर लुटाने में दिखाती थी तत्परता
अब बदला है उसने अपना परिप्रेक्ष्य, अपना दृध्टिकोण
जिसके चलते हरदम समझती थी स्वयं को ही गौण
उसे ज़रुरत थी एक छेनी की धारदार
बाहर लाने अंदर की मूरत का किरदार
हटाना था उसे बाहर का वृथा मलवा
दिखाने अपना असली रूप और जलवा
क्यों रखे छुपा अपना उदार मन और मस्तिष्क
प्रभु ने उसे बनाया है छूने अन्तरिक्ष

ऐसा नहीं है की वो है परफेक्ट ,दोषरहित
पर यह भी सच है कि वो है एक कृति उत्कृष्ट
जो इसे समझते हैं उनके लिए है बहुमूल्य मिसाल
जो नहीं समझे उनके लिए प्यारा सा इंसान कमाल

रविन्द्र कुमार करनानी 

rkkarnani@gmail.com

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