12 जून 2019 आज गंगा दशहरा है , बहुत ही पावन दिन | आज ही के दिन माँ पांच तत्वों में विलीन हो गई थीं | वैसे तो अपनी माँ को कोई नहीं भूलता पर ऐसे विशेष दिन स्मृतियां अधिक प्रखर हो जाती हैं | आँखें नम तो सुबह से कई बार हुवी हैं पर सुन्दर मीठे क्षणों को याद करके, दुःख से नहीं | मानस पटल पर सरोज और मुझसे कहीं ज्यादा दृश्य माँ और उनकी प्यारी पोतियाँ : रचना, चेतना,भावना के हैं| याद करके आँखें भर रही हैं पर होंठ मुस्कुरा रहे हैं ! एकदम सजीव चित्र आँखों के आगे चल चित्र की तरह घूम रहा है | माँ का उनके साथ सोते सोते तक बातें करना , उनकी बुखार आदि में उनके साथ ताश और ऊनो खेलना ! उनको संस्कृत के श्लोक याद कराना, एक श्लोक तो मुझे भी बच्चों ने ही याद कराया था अपनी दादी से सीख कर :
वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूरमर्दनं |
देवकी परमानंदं कृष्णं वंदे जगद्गुरुं ||
आज मेरी माँ के प्रयाण के दिन मेरे ह्रदय की कोर से निकले श्रद्धा के शब्द विश्व की सभी माताओं को समर्पित हैं !
युवक था खड़ा
ऊंची पहाड़ी पर
“भगवा~~~ न … !”
थका था नींद अच्छी आई
सपने में प्रभु ने
सारी उलझन सुलझाई
एक अहम् गहन बात बताई
“मैं हो नहीं सकता हर जगह
“दुनिया में जब पुकारोगे मुझे
श्रद्धा सुमन माँ को !!
बहुत प्यारी कविता है यह .
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प्रेरक सराहना के लिए धन्यवाद |
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अति सुंदर रचना बहुत सुंदर
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बहुत खूबसूरती से लिखा है सर। बहुत खूब।👌👌
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प्रेरक सराहना के लिए धन्यवाद |
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