अत्यंत सुन्दर दिल को छूने वाली कविता | इसे अपने Blog पर साझा करने से स्वयं को रोक नहीं पाया | विश्वास है आपको भी पसंद आयेगी |
सुपर 30 मूवी देखने के बाद बहुत सारे विचार मन में आए। समाज के एक वर्ग के बच्चे जिनमें टैलेंट है, ज्ञान है, लगन हैं लेकिन उन्हें आगे बढ़ने का मौक़ा नहीं मिलता है उन्हीं बच्चों की आवाज़ बनकर मैंने इस कविता को लिखा है।
मैं भी पढना चाहता हूँ,
आगे बढ़ना चाहता हूँ,
कोई तो आकर थाम लो।
मुझको भी एक मौक़ा दो,
मैं छू लूँ आसमान को!
ग़रीब घर पैदा होना,मेरी कहाँ गलती है।
मेरे मन में भी एक, हलचल सी मचलती है।
कोई तो आकर मेरे, बचपन को संवार दो!
मुझको भी एक मौक़ा दो,
मैं छू लूँ आसमान को!
कभी काम कर, कभी माँग कर,
मैं करता हूँ अपना गुज़ारा।
भूख प्यास से मारा मारा, दिन रात फिरूँ मैं आवारा।
कोई तो आकर मेरी, आवारगी की राह बनो!
मुझको भी एक मौक़ा दो,
मैं छू लूँ आसमान को!
इस बढ़ी दुनिया में,कोई तो हो मेरा अपना।
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Bahut achchha laga. sabko mauka barabar ka milna chahiye. Sahi kaha.
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ग़रीब घर पैदा होना,मेरी कहाँ गलती है।
मेरे मन में भी एक, हलचल सी मचलती है।
कोई तो आकर मेरे, बचपन को संवार दो!
मुझको भी एक मौक़ा दो,
मैं छू लूँ आसमान को!
कई दीपक बिना तेल के बुझ गए,
कई दीपक तेल में डूबकर बुझ गए।
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Waah, bahut pate ki baat hai ye Madhusudan ji:
कई दीपक बिना तेल के बुझ गए,
कई दीपक तेल में डूबकर बुझ गए।
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