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अँधेरी रात और चाँद

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Raat aur Chand original

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Raat aur Chand

अँधेरी रात और चाँद

अँधेरी रात ने चंदा से लग कर गले अपना किसा सुनाया है
बेइन्तहा  चाहती है चाँद को कितना ,भरे गले से  बताया है
कैसे चंदा की चाँदनी में शर्म से छुप जाती है वो हर रोज
कैसे उसकी निकटता  में, वजूद अपना  हरदम गंवाया है
चाँद घटता तो कभी बढ़ता है पर वो रहती सदा अटल
आधा अधूरा या हो पूरा, चंदा को चाहती है वो हर पल
बदनामी की कालिख भी स्वीकार ली अपने ही भाल  पर
चंदा को दाग लग ना जाये कोशिश ये रहती हर हाल पर
जिस  रात में चन्दा आकाश में नहीं आता  है काम पर
अमावस की रात बता, दोष ले लेती अपने ही नाम पर |
रविन्द्र कुमार करनानी 

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