Received this very interesting image on Whatsapp and also Facebook:
There was a request to post your thoughts on the same!
This is how I responded:
अँधेरी रात और चाँद
अँधेरी रात ने चंदा से लग कर गले अपना किसा सुनाया है
बेइन्तहा चाहती है चाँद को कितना ,भरे गले से बताया है
बेइन्तहा चाहती है चाँद को कितना ,भरे गले से बताया है
कैसे चंदा की चाँदनी में शर्म से छुप जाती है वो हर रोज
कैसे उसकी निकटता में, वजूद अपना हरदम गंवाया है
चाँद घटता तो कभी बढ़ता है पर वो रहती सदा अटल
आधा अधूरा या हो पूरा, चंदा को चाहती है वो हर पल
बदनामी की कालिख भी स्वीकार ली अपने ही भाल पर
चंदा को दाग लग ना जाये कोशिश ये रहती हर हाल पर
जिस रात में चन्दा आकाश में नहीं आता है काम पर
अमावस की रात बता, दोष ले लेती अपने ही नाम पर |
–रविन्द्र कुमार करनानी
बहुत ख़ूब सर
LikeLiked by 1 person
बेहतरीन। बहुत खूब।👌👌
LikeLiked by 1 person