Life, My Poems, relationship

जिम्मेदारी और हसरतें

Zimmedari aur Hasraten

 

जिम्मेदारी और हसरतें

दादा दादी ने भावुकता में लाने का किया प्रयास
माँ ने कहा रुक जा,सब ठीक होगा,रख विश्वास
पिता ने डाँटा फटकारा फिर उठाया अपना हाथ
चाचा ने समझाया बहुत उसे, डाल गले में बाँथ
बहन ने रो रो दिया अपनी राखी का वास्ता
छोटे ने आँसू भर रोकना चाहा उसका रास्ता|  

घर का बड़ा था,पढ़ा लिखा था, ऊँचा उसे उठना था
कूप मंडूक नहीं रह, उसको नया संसार देखना था
काटी स्नेह की ज़ंजीरें और बोझ उतारा जिम्मेवारी का
पंख लगाये हसरतों के,समय था उड़ने की तैयारी का!  

ऊँची छलाँग लगा चुका था, नज़र आ रहा नया जहाँ
उन्नति के अवसर दीख रहे थे, चारों ओऱ, यहाँ वहां
पर ना दीखा कोई अपना,नज़र दौड़ाई कहाँ कहाँ
याद आने लगे थे उसको, दादा दादी पिता और माँ
पर अपना किया कठोर मन, सोच होगा भविष्य स्वर्ण
कुछ बन सबको लेआऊं यहीं, प्रण किया अंतःकरण| 

देखना है तब क्या होता है जब छूयेगा वो नई नई ऊँचाइयाँ
क्या निभायेगा स्वयं से वादा या सीमित होगा अपनी इकाइयाँ !

-रविन्द्र कुमार करनानी
 rkkblog1951.wordpress.com

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11 thoughts on “जिम्मेदारी और हसरतें”

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