टीचर होते विशेष !
मैं हूँ एक टीचर , बच्चों की हूँ M’am
हमारे भी हर दिन होते नहीं same
अभी उठ रही है इतनी शिकायतें मन में
झुंझलाहट भर दी है तन बदन में
शरीर थक कर हो रहा है चूर चूर
दिल कहता है,”बस कर! धीरज रख चुकी हो भरपूर,
त्याग पत्र दो और जीवन में लावो कुछ सुरूर | ”
तभी किसी ने मेरे दुप्पट्टे का कोना खींचा
लगा जैसे किसी ने ठन्डे जल से मुझे सींचा
दांतो के बीच की फांक दिखाता,मुस्कुराता
मेरा चेहरा तक रहा था नर्सरी का बच्चा
यह मुस्कान थी मेरे लिए शीतल जल की एक फुहार
और मैं फिर से सारी परशानियाँ सहने को थी तैयार
उस एक मुस्कान ने याद दिला दी मुझे सैंकड़ों मुस्काने छोटी छोटी
एहसास दिलाया एक टीचर के लिए पढ़ाना नहीं है सिर्फ दाल रोटी
एहसास दिलाया माँ बाप से पहले का मिला है शिक्षक को ओहदा
उसे ही सींचना है ,संवारना है , विकसित करना है यह नन्हा पौधा
सच तो यह है इस प्यारे काम के साथ साथ एक और होता काम कठिन
Overprotective parents को समझाने का काम है बहुत जटिल
एहसास दिलाया, यह कार्य है असल में समाज के सृजन का, विकास का
एहसास दिलाया, की कोई भी मौका ना चूके इस दिशा में प्रयास का
उभरना होगा मन की कमजोरी के ऊपर
तन की, मन की, थकान भुला कर, आगे हरदम होगा student
अभी तक जैसे दिया है मैंने,आगे भी देना है अपना पूरा 100%
–रविन्द्र कुमार करनानी
05 Sep. 2018
बिलकुल सच्ची बातें लिखी है आपने .
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