My Poems

कानन

आज का शब्द कानन (वन, जंगल)
कानन
“कानन” सुन सहज ही याद आती
माता की आरती!
“कानन कुंडल शोभित,नासाग्रे मोती”
आज का संदर्भ ऐसा
“कानन” को बुद्धि,
धरती माँ संग जोड़ती।
वीरान होरहे थे कानन
काटे जा रहे थे आनन फानन
ये बातें भूतकाल की हैं
अब शुरू है नया आंदोलन।
जाग उठा है मनुष्य
खाकर ठोकर पर ठोकर
गलती सुधार रहा अपनी
नित नए पौधे बो कर।
पाठ और भी पक्का किया जब
कोविड काल ने आकर बताई
मूक प्राणी के घर की महत्ता
हमारी अपने घर तक थी
सिमट गई अपनी सत्ता।
अब आनन फानन में ना सही
पर हरित हो रहे कानन फिर से
आभार जताता हर प्राणी सृष्टि का
अपने अंदरतम हिय से।
-रविन्द्र कुमार करनानी
22.10.2020
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आभारी द्रुम

शब्द ज्ञान श्रृंखला 
आज का शब्द : द्रुम = वृक्ष, पेड़

श्री जयशंकर प्रसाद की कामायनी से…  
कीर्ति, दीप्ती, शोभा थी नचती
अरूण-किरण-सी चारों ओर,
सप्तसिंधु के तरल कणों में,
द्रुम-दल में, आनन्द-विभोर।

आज से पहले मैंने “द्रुम” शब्द केवल शिव जी स्तुति में ही सुना,पढ़ा है और वह भी बचपन से |
“कलद्रुम अरु पारिजात तरु लाग रहे हैं लक्षासी”…….शिवजी के आस पास के वातावरण का वर्णन है |  
पर जब उसका अर्थ पढ़ते हैं : द्रुम=पेड़ या वृक्ष तब सहसा “चिपको आंदोलन” ही याद आता है |  उस आंदोलन से जुडी महिला हो या पुरुष आज शिवजी से कम आदरणीय नहीं हैं |  एक अकेले चिपको आंदोलन ने पेड़ बचाने की मुहिम पूरे विश्व में फैला दी थी |

आभारी द्रुम

ये द्रुम,वो द्रुम, मैं द्रुम, सब द्रुम मिलते तो जंगल बनता है
मेरी कीमत क्या जाने शहरी, वो जाने जो मुझमें  रमता है
वो जानता मेरे सचमुच के उपकार,मिटटी पानी और बयार  
मानता भी दिल से आभार ये तीनों उसके जीने के हैं आधार
एक काटने को तत्पर है अधिकारियों की जो जेब भरता है
दूजा मरने को तत्पर है, मेरा उपकार मान पूजा करता है
हम सब बिन अंधड़ तूफ़ान के थर थर काँप जाया  करते थे
अपनी और बढ़ते आरों,ट्रकों ,डम्परों की सेना को तकते थे
तुमने ही नहीं मनुष्य हमने भी  वात्सल्य की ऊष्मा पाई है
चिर कृतज्ञ हम हर उस महिला के जो छाती से हमें लगाईं है
“चिपको” ना होता तो ना हम होते ना इस दुनिया में इतने द्रुम
आने वाली पीढ़ी के लिए हम भी होते डायनासोर की तरह गुम

-रविन्द्र कुमार करनानी
07 Oct 2020
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