हाइकु सत्रह (१७) अक्षर में लिखी जाने वाली सबसे छोटी कविता है। इसमें तीन पंक्तियाँ रहती हैं। प्रथम पंक्ति में ५ अक्षर, दूसरी में ७ और तीसरी में ५ अक्षर रहते हैं। संयुक्त अक्षर को एक अक्षर गिना जाता है, जैसे ‘सुगन्ध’ में तीन अक्षर हैं – सु-१, ग-१, न्ध-१) तीनों वाक्य अलग-अलग होने चाहिए। अर्थात एक ही वाक्य को ५,७,५ के क्रम में तोड़कर नहीं लिखना है। बल्कि तीन पूर्ण पंक्तियाँ हों। मैंने पहले भी हाइकू कविता लिखी हैं, पर वे इस नियमपर खरी नहीं उतरती! प्रयास है हाइकु के नियमानुसार लिखने का , उसी सन्दर्भ में :
वसुधैव कुटुम्बकम् मेरा ऐसा मानना है कि समाज में पहले से अधिक भाईचारा है और विशेष कर कोरोना काल के प्रादुर्भाव से और भी बढ़ा है | परिवार से शुरुवात होकर पास पड़ोस, फिर मकान या कॉम्प्लेक्स और फिर अपने समाज ,शहर आदि में इस भाईचारे का फैलाव दुनिया के सभी वृद्धाश्रमों को बंद करने की शक्ति रखता है| लॉकडाउन के समय के अपने अनुभव से मन में आये विचारों को शब्द दिए थे वही साझा कर रहा हूँ | शुरुवात मैंने जरूर अपने समाज का नाम लेकर की है क्योंकि इसे ही मैंने नजदीक से देखा है पर मेरे अनुसार यही हर समाज का सच है, कहीं बहुत कहीं कुछ कम ! और सबसे अहम् बात जिसे कहने का प्रयास कर रहा हूँ वो है की वसुधैव कुटुम्बकम् साकार होने की पहली पायदान है संयुक्त परिवार!
संयुक्त परिवार की चाह (वसुधैव कुटुम्बकम् की ओर पहला कदम)
मेरा मारवाड़ी समाज है प्राचीन,है नवीन अत्युत्तम,विलक्षण,अनोखा अनेकता में एकता अग्रवाल,माहेश्वरी,ओसवाल जैन,गोयल,खंडेलवाल विभिन्नता पर एकता मानों भारत कीअनेकता में एकता का हो एक नन्हा सा प्रतीक।
सब हैं अलग अलग परिपाटी के सूचक परम्पराएं हैं पर रूढ़ि से परे रीति रिवाज़ हैं पर लकीर की फकीरी नहीं। अपने अपने धर्मों का निर्वाह अपने अपने अनुसार प्रेम और भाईचारे में आड़े नहीं आता इसका कोई विचार।
गावों में,कस्बों में ये सब है आम बात पर शहर की व्यस्तता में भी जब यह नज़र आती बात हो जाती ख़ास। बड़े बड़े काम्प्लेक्स हों या एक अकेला मकान जैसे 142 ब्लाक A लेक टाउन के सामान सारे मिल हर जश्न मनाते छोटों का जन्मदिन हो या बड़ों को देना हो मान। यह सब कर पाना हमारे आदि संस्कारों में भर देते नित नई जान बच्चों को सिखाते भारत की संस्कृति को देना उचित मान।
एक और है जो बात मैंने अभी नहीं कही यहाँ,असीम दुःख में भी कोई अकेला होता नहीं। मुश्किलें यहाँ कभी किसी एक अकेले की होती नहीं जब कंधे से कंधा मिल जाता हर विपदा हो जाती सही। अलग अलग होकर भी संयुक्त से हो जाते परिवार बच्चे सहज ही सीख जाते यहाँ सेवा सत्कार स्नेह और प्यार।
मकान हो या काम्प्लेक्स इनमें परिवारों का ऐसा परिप्रेक्ष्य काश ये उमड़ कर सैलाब बन पूरे समाज को बहा ले जाय पुनः संयुक्त परिवारों की ओर बंद हो जाएँ वृद्धाश्रम चहुँ ओर।
This Sanskrit song by Dr. Chandrabhanu Tripathi sung by Gabriella Brunnel . Click on her name to view the video. It has gone viral on social media and when we watch it we know why!
Below are the lyrics :
Government and banks etc can afford a loan waiver of thousands of crores for Farmers and others considered financially weak. What I request is NOT a waiver but a defer of loan. Trust this would reach the proper authorities and positive action initiated.