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Totakashtakam (तोटकाष्टकम्)

I am a devotee of Art of Living founded in 1981 by Gurudev Sri Sri Ravi Shankar ji. More than an organisation, it is an educational and humanitarian movement engaged in stress-management and service initiatives.  I do Sudarshan Kriya regularly. I also do my “Follow-up” also called Long Kriya every Sunday at Kaligodam in Burrabazar Kolkata. 

Now, what has Totakashtakam got to with my practice detailed above? I got introduced to Totakashtakam during one such “Follow-up” session being taken by one Shri Dhiraj Verma ji, a teacher in Art of Living. During the Yoga and freehand exercise we do before the Follow-up, Dhiraj Verma ji played the Totakashtakam on a mike and we did aerobic like movements with the beat of the sholkas! Honestly, I could not understand a single word of the verses in Sanskrit beyond the line: “भवशंकर देशिक मे शरणं” but loved the vibes. On returning home I researched it and loved it even more when learned about it and its creator Totakacharya in detail.
Here is the video with the same rhythm that had me 
hooked:
https://www.youtube.com/watch?v=TKkeB_Jwy9Q

I found quiet a lot about Totakastakam and Totakacharya on the Net but most of it is in English. So is the translation of Totakastakam, I found many translations but not a single in Hindi. Below is the story of Totakacharya and an effort to translate  Totakastakam both in Hindi.
तोटकाचार्य की कथा 

यदि हम यह कहें कि आदि शंकराचार्य जी ने तोटकाचार्य के रूप में एक नररत्न ही खोजा था तो अतिशयोक्ति नहीं होगी |  उनके के चार मुख्य शिष्यों मे से एक तोटकाचार्य जी थे |  ये वहीं चार शिष्य थे , जिन्हें आगे जाकर आदि शंकराचार्यजी ने चार पीठों की व्यवस्था सौंपी | उनमें से एक थे – तोटकाचार्य | तोटकाचार्य जी ने उत्तर भारत के ऐसा माना जाता है कि आदि शंकराचार्य जब शृंगेरी में थे, तब उनकी भेंट एक बालक से हुई |बालक का नाम गिरी था | शंकराचार्यजी ने उसे अपना शिष्य स्वीकार लिया |

गिरी बडा श्रमी था और अन्य शिष्यों की भाँति अपना पूरा समय ग्रंथपठन में नहीं लगाता था| उसका अधिकांश समय सद्गुरू शंकराचार्य जी की काया, वाचा, मन से सेवा करने में ही व्यतीत होता था |इसी कारण अन्य शिष्य उसे शास्त्राभ्यास में बहुत कच्चा मानते थे | वह उनके लिए एक हँसी का पात्र बना रहता था |

एक दिन जब गिरी, आदि शंकराचार्यजी के वस्त्र नदी में धो रहा था, उसी समय आदि शंकराचार्यजी ने मठ में अद्वैत वेदान्त की कक्षा आरंभ की | परंतु गिरी को वहाँ न देख आदि शंकराचार्य उसकी प्रतिक्षा करने लगे | तब एक शिष्य ने कहाँ, कि आचार्य गिरी को सिखाना तो किसी दिवार को सिखाने जितना निरर्थक है |

शंकराचार्यजी समझ गए की अन्य शिष्यों का अहं व भ्रम दूर करने का यहीं समय है | आचार्य ने मन के द्वारा ही गिरी को शास्त्रों का समस्त ज्ञान दे दिया | वहाँ नदीतट पर गिरी को ज्ञानप्राप्ती से आत्मिक आनंद की अनुभूती हुई | वह उसी भाव में तल्लीनता की अवस्था में अपने श्रीगुरू के समक्ष चले आये | सद्गुरू के प्रत्यक्ष सहज कृतार्थ भाव से उन्होंने तोटकाष्टक इस गुरूस्तुती की मन में रचना कर उसका गायन किया |

पूरे समय गुरुसेवा में रत रहने वाले गिरी के मुख से शास्त्रों का ज्ञान सुन बाकी शिष्य हतप्रद और शर्मसार हुए |तोटक वृत्त में सर्वोत्तम रचना करने के कारण आचार्यजी ने उनका नाम तोटकाचार्य रखा |

प्रस्तुत है आदि शंकराचार्यजी की प्रशंसा और सम्मान में तोटकाचार्य जी द्वारा रचित वह स्तुति व उसका अंग्रेजी में अर्थ |  मैंने भी आदि शंकराचार्यजी और तोटकाचार्य  जी  से  कर बद्ध  क्षमा मांगते हुवे, एक लघु प्रयास किया है उस अद्वितीय  स्तुति का हिंदी रूपांतर करने का , जैसा है  स्वीकार करें | आपके सुझाव और आलोचनाओं का  स्वागत है |  अपने विचार Comment Box में जरूर लिखें !

Toṭakāṣṭakam2

6 thoughts on “Totakashtakam (तोटकाष्टकम्)”

    1. प्रशंसा करने के लिए धन्यवाद | मेरा तो केवल अनुवाद करने का प्रयास था | मेरा आग्रह है की youtube के लिंक पर जाकर संस्कृत में इसका मूल पाठ सुनें , अत्यंत सुन्दर है :

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  1. इतना मधुर लगते है यह श्लोक
    है भगवान तेरा बेटे का यह स्तुति सुन सुनकर हमे इस शरीर से जीवन को छोड़ना है।

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  2. आपके इस प्रयास की हम बहुत ही प्रशंशा करते है। धन्यवाद

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  3. इस स्त्रोत का हिंदी अर्थ मुझे कहीं भी नहीं मिला।ये हमारे भारत देश का दुर्भाग्य है जो संस्कृत स्त्रोत का अर्थ हिंदी में ना होकर अंग्रेजी में है। पता नहीं किस अंग्रेज़ के लिए लिख रहे हैं ये लोग इस अर्थ को।अंग्रजी जैसी तुच्छ भाषा इसका पूरा अर्थ कभी नहीं बता सकती,क्योंकि उसमें इतने शब्द ही नहीं जो किसी भी संस्कृत स्त्रोत का हिंदी अनुवाद कर सकें। आपके द्वारा किए इस प्रयास के लिए आपको मेरा धन्यवाद

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